डॉ.कविता भट्ट,
1-मुक्तक
गहन हुआ अँधियार
प्रियतम मन के द्वार ।
धरो प्रेम का दीप
कर दो कुछ उपकार ।
2
नीरव मन के द्वार
अँसुवन की है धार।
छू प्रेम की वीणा
झंकृत कर दो तार ॥
3-दोहा
छोटी- छोटी बात पर,
मत करना तुम रार ।
मेरे जीवन का सभी
तुम पर ही अब भार।
4-दोहा
माटी-सी इस देह के
तुम हो प्राणाधार ।
तुम्हीं आत्मा हो प्रिये !
मैं तो बस संचार ॥
-0-
[चित्र -गूग्ल से साभार ]
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