Thursday, July 4, 2019

कभी डूबता नहीं सूरज


 डॉ.कविता भट्ट

सूरज  फिर आज मुस्काता उगा
उपहास करता तुच्छ मानव का!
जो कल साँझ को कह रहा था-
'डूबते सूरज को नहीं नमन होता!'
भूल जाते वेसूरज कर्मयोगी-सा
कभी डूबता नहींन ही है उगता
बिना भेदभाव केवल प्रकाश बाँटता
गनीमत है -वश नहीं मानव का ,
अन्यथा, इसे भी तुच्छ बुद्धि ! बाँटता,
काटता-छाँटताडुबाता-उगाता...
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