1-डॉ. कविता भट्ट
रेत को मुट्ठी में भर करके हम फिसलने नहीं देते ।
डराएँगे क्या अँधेरे अपनी बुरी निगाहों से हमें ।
फ़ख्र तारों पर है जो उजालों को ढलने नहीं देते ॥
2-रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
डर था ज़िन्दगी न जाने किधर जाएगी ।
गूगल से साभार
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रेत बनकर ये किसी दिन बिखर जाएगी ॥
तुम जो अचानक मिले आज हमें मोड़ पर ।
अब हमको लगा कि क़िस्मत सँवर जाएगी॥
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