Monday, July 1, 2019

मुक्तक

  1-डॉ. कविता भट्ट
रेत को मुट्ठी में भर करके  हम  फिसलने नहीं देते ।
वक्त कितना भी हो मुश्किल ,खुद को बदलने नहीं देते॥
 डराएँगे क्या अँधेरे  अपनी बुरी निगाहों से हमें ।
फ़ख्र  तारों पर  है जो उजालों को ढलने नहीं देते ॥
*                       
2-रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
डर था ज़िन्दगी न जाने किधर जाएगी ।
गूगल से साभार
रेत बनकर ये  किसी दिन बिखर जाएगी ॥
तुम जो अचानक मिले  आज हमें मोड़ पर ।
अब   हमको लगा  कि क़िस्मत सँवर जाएगी॥


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मेरे हाइकु