Monday, July 15, 2019

40-कर्मयोगिनी मौन


कर्मयोगिनी मौन
कविता भट्ट
ओ आमार उठोनेर  रजनीगंधा,
शोनो
शेखाबे की आमाके
अंधकारे
हासार कौशल?
आर हे प्रिये! सादा फूलेर द्वारा
रात्रिर कालो बइये
करो तुमि सशक्त हस्ताक्षर
प्रेम ना कर्म की तोमार वार्ता?
जानाबे आमाय।
कर्मयोगी अथवा रातजागा प्रेमी
के तुमि?
प्रियेर प्रेयसी
अथवा कर्मयोगिनी मौन।
-0-(अनुवादक हिंदी से बंगाली देवनागरी डॉ.भीखी प्रसाद 'वीरेंद्र' सिलीगुड़ी)

আমার উঠলে রজনী গন্ধা ,
শোনো
শেখাবে কি আমাকে অঁন্ধকারে,
হাসার কৌশল?
আর হে প্রিয়ে!
সাদা ফুলের দ্বারা 
রাএির কালো বইয়ে
করো তুমি সশস্ত্র হস্তাক্ষর
প্রেম না কর্ম কী তোমার বার্তা ?
জানাবে আমায়
কর্ম যোগী অথবা রাতজাগা প্রেমী
কে তুমি?
 প্রিয়ের প্রেয়সী
অথবা কর্ম যোগিনী মৌন
(देवनागरी से बंगाली लिप्यन्तरण डॉ संजय 'कर्ण' , एच ए आर सी, देहरादून, उत्तराखण्ड)

'मूल कविता  [[कर्मयोगिनी मौन / कविता भट्ट]]

रजनीगंधा
ओ मेरे आँगन की
सुनो तो तुम !
सिखाओगी क्या मुझे
अंधकार में
मुस्काने का कौशल ?
और हाँ ,प्रिया!
श्वेत पुष्पों से तुम
काले पृष्ठों पर
रात की पुस्तक के
किया करती
सशक्त हस्ताक्षर
प्रेम या कर्म
क्या तुम्हारा संदेश
मुझे बताना  !
कर्मयोगी या फिर
प्रेमी जागते
रातों को अकेले ही
हो तुम कौन
प्रेयसी प्रिय की या
कर्मयोगिनी मौन ।


Friday, July 5, 2019

बन्द दरवाजा

डॉ.कविता भट्ट

सूरज निकलते ही
कभी खुलता था
पहाड़ी की ओर
जो बन्द दरवाज़ा 
साथी दरवाजे से
सिसकते हुए बोला-
बन्धु! सुनो तो क्या 
है अनुमान तुम्हारा  
हमें फिर से क्या
कोई आकर खोलेगा
घर की दीवारों से 
क्या अब कोई बोलेगा
इस पर कई वर्षों से
बन्द पड़ी एक खिड़की
अपनी सखी खिड़की की 
सूनी आँखों में झाँककर
अँधेरे में सुबकती रोने लगी-
इतने में भोर होने लगी
दरवाजे भी चुपचाप हैं
खिड़कियाँ भी हैं उदास
खुलने की नहीं बची आस
मगर सच कहूँन जाने क्यों
इन  सबको  है हवा पर विश्वास   
लगता हैसुनेगी सिसकियाँ
पगडंडियों से उतरती हवा
पलटेगी रुख शायद अब
धक्का देकर चरमराते हुए
पहाड़ी की ओर फिर से
खुलेगा- बन्द पड़ा दरवाजा
चरमराहट के संगीत पर
झूमेंगी फिर से खिड़कियाँ
घाटी में गूँजेंगी स्वर -लहरियाँ
-0-


Thursday, July 4, 2019

कभी डूबता नहीं सूरज


 डॉ.कविता भट्ट

सूरज  फिर आज मुस्काता उगा
उपहास करता तुच्छ मानव का!
जो कल साँझ को कह रहा था-
'डूबते सूरज को नहीं नमन होता!'
भूल जाते वेसूरज कर्मयोगी-सा
कभी डूबता नहींन ही है उगता
बिना भेदभाव केवल प्रकाश बाँटता
गनीमत है -वश नहीं मानव का ,
अन्यथा, इसे भी तुच्छ बुद्धि ! बाँटता,
काटता-छाँटताडुबाता-उगाता...
-0-


Wednesday, July 3, 2019

बचपन पहाड़ का



डॉ.कविता भट्ट 
                         (हे... गढ़वाल विश्वविद्यालय,श्रीनगर (गढ़वाल) उत्तराखंड)


.सी.में बैठ बनती हैं अधिकार-नीतियाँ
चर्चाएँ करती रहती हैं ए- बड़ी-बड़ी विभूतियाँ
बारिश-धूप में पलता है- बचपन पहाड़ का
पढ़ने को कोसों चलता है- बचपन पहाड़ का ।


शहरों में बोझे बस्तों के ही लगते हैं मुश्किल
यहाँ घास-पानी-गोबर भी है- बोझे में शामिल
पहाड़ी बर्फ़-सा गलता है- बचपन पहाड़ का
होटलों में बर्तन मलता है- बचपन पहाड़ का ।

इनको जरा निहारो तुम ओ बाबूजी करीब से
आँखें मिलाओ ,तो जरा किसी बच्चे गरीब से
गिरता है और  सँभलता है- बचपन पहाड़ का
बस ठोकरों में ही पलता है- बचपन पहाड़ का।

सरकारें जपती रहती हैं- नित माला विकास की
कोई तो सुध ले पहाड़ी- से इस ढलती आस की
पहाड़ी सूरज- सा उग-ढलता है बचपन पहाड़ का
पगडंडियों में गुम मिलता है- बचपन पहाड़ का ।
-0-



पहाड़ी नारी

डॉ.कविता भट्ट


अस्थियों के कंकाल शरीर को
वह आहें भरअब भी ढो रही है,
जब अटूट श्वासों की उष्णता,
जीवन की परिभाषा खो रही है।
अब भी पल्लू सिर पर रखे हुए,
आडम्बर के संस्कारों में जीवन डुबो रही है।
 क्या लौहनिर्मित है यह सिर या कमर?
जिस पर पहाड़ी नारी पशुवत् बोझे ढो रही है।
जहाँ मानवाधिकार तक नहीं प्राप्य
वहाँ महिला-अधिकारों की बात हो रही है।
इस लोकतन्त्र पंचायतराज में वह अब भी,
वास्तविक प्रधान-हस्ताक्षर की बाट जोह रही है।
नशे में झूम रहा है पुरुषत्व किन्तु,
ठेकों को बन्द करने के सपने संजो रही है।
कहीं तो सवेरा होगा इस आस में,
रात का अँधियारा अश्रुओं से धो रही है।
पशुवत् पुरुषत्व की प्रताड़नाएँ,
ममतामयी फिर भी परम्परा ढो रही है।
पत्थर-मिट्टी के छप्पर जैसे घर में,
धुँएँ में घुटीखेतों में खपकर मिट्टी हो रही है।
शहरी संवर्ग का प्रश्न नहीं,
पीड़ा ग्रामीण अंचलों को हो रही है
वातानुकूलित कक्षों की वार्ताएँ-निरर्थकनिष्फल,
यहाँ पहाड़ी-ग्रामीण महिलाओं की चर्चा हो रही है।
एक ओर महिलाओं की सफलता है बुलंदियों पर,
दूसरी ओर महिला स्वतन्त्रता बैसाखियाँ सँजो रही है।
-0-                                                                                                                                          [चित्र गूगल से साभार]


नई भोर की नई रीत

1-डॉ0 कविता भट्ट  

रात का रोना तो बहुत हो चुका ,
नई भोर की नई रीत लिखें अब।

नहीं ला सकता  है समय बुढ़ापा ,
युगल पृष्ठों पर  हम गीत लिखें अब ।

नहीं हों आँसू  हों नहीं  सिसकियाँ,
प्रेम-शृंगार और प्रीत लिखें अब।

दु:ख- संघर्षों  से हार न माने ,
वही भावाक्षर मन मीत लिखें अब।

समय जिसे  कभी  बुझा  नहीं  पाए

हम वह जिजीविषा पुनीत लिखें अब।

कभी हार न जाना ठोकर खाकर,
पग-पग पर वही उद्गीत लिखें अब।

काल -गति से  कभी बाधित न होंगे
आज कुछ इसके विपरीत लिखें अब।

यही समय हमारा नाम लिखेगा ,
सोपानों पर नई जीत लिखें अब।
-0-[हे0न0ब0गढ़वाल विश्वविद्यालय,श्रीनगर (गढ़वाल),उत्तराखण्ड]
 [ चित्र-रश्मि शर्मा , राँची के सौजन्य से]

कर्मयोगी कलाम

डॉ.कविता भट्ट 'शैलपुत्री


ऐसे मनुष्य पृथ्वी पर कम ही जन्म लेते हैंजिनको उनकी मेहनतलगनईमानदारीसादगी एवं कर्मठता आदि के लिए मात्र अपने देश में ही नहीं समस्त संसार में पूजा जाता है। ऐसे व्यक्ति जो निर्धन या साधारण

परिवार में जन्म लेकर देश के राष्ट्रपति जैसे सर्वश्रेष्ठ पद पर सुशोभित होते हैंकिन्तु पद एवं प्रतिष्ठा के लालच से रहित उतनी ही सादगी के साथ जीवन व्यतीत करते हैंवास्तव में ये सच्चे कर्मयोगी होते हैं। कलाम के रूप में एक वैज्ञानिक का वैयक्तिक हितों से दूर होकर सामाजिक समर्पण भाव सीख लेने लायक है। ऐसे ही महान कर्मयोगी मिसाइलमैन श्री ए पी जे अब्दुल कलाम का जन्म 15 अक्टूबर, 1931 को तमिलनाडु राज्य के पवित्र तीर्थ रामेश्वरम स्थित धनुषकौड़ी नामक गाँव में एक निम्न मध्यमवर्गीय मुस्लिम परिवार में हुआ। इनका पूरा नाम अबुल पाकिर जैनुलाबदीन अब्दुल कलाम था। इनके पिता जैनुलाब्दीन थे एवं माता का नाम आशियम्मा था। वे दोनों ही धर्मपरायण और दयालु थे।  वे पढ़े लिखे तो नहीं थे किन्तु उनके दिए हुए संस्कारों ने कलाम को एक अनुशासित एवं नैतिक व्यक्ति बनायाकलाम पर उनके पिता के संस्कारों का सबसे अधिक प्रभाव था। उनके पिता हिन्दू तीर्थ यात्रियों के के लिए मल्लाहों को नाव किराये पर देते थे।

कलाम के परिवार में उनके दादा-दादी तथा माता-पिता आदि सभी उदार प्रवृत्ति के थे। वे हिन्दू-मुस्लिम दोनों ही धर्मों की परम्पराओं में भागीदारी करते थे। उनकी दादी प्रत्येक रात को सोने से पूर्व उन्हें भगवान राम एवं पैगम्बर मोहम्मद की कहानी सुनाया करती थी । रामेश्वरम तीर्थस्थल में तालाब के बीचो-बीच सीता-राम विवाह का आयोजन प्रत्येक वर्ष  किया जाता था और उस समारोह के लिए उनके पिता विशेष प्रकार की नावों की व्यवस्था किया करते थे।

प्रारम्भ में परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक ही थीकिन्तु बाढ़ में जमीन बह जाने के कारण परिवार पर आर्थिक संकट आ गया था। बहुत बड़े संयुक्त परिवार के एक सदस्य होने के नाते कलाम की आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी। ये परिवार में सबसे छोटे थेजैसे-जैसे ये बड़े होते रहे इनकी पढाई के प्रति रूचि तथा जिज्ञासा बढती चली गयी। कलाम को पांच वर्ष की अवस्था में रामेश्वरम के पंचायती प्राथमिक विद्यालय में प्राथमिक शिक्षा के लिए भर्ती करवा दिया गया। उनके एक शिक्षक इयादुराई सोलोमन ने उन्हें शिक्षा दी कि जीवन में सफलता तथा अनुकूल परिणाम के लिए तीव्र इच्छाआस्था एवं अपेक्षा इन तीनों की आवश्यकता होती है तथा इन पर पूरा प्रभुत्व होना चाहिए। इसी शिक्षा को कलाम ने आजीवन अपने पल्ले बाँध लिया। रामेश्वरम मंदिर उनके घर से कुछ ही दूर था और मंदिर के पुजारी उनके पिता के अच्छे मित्र थे। कलाम प्राय: मंदिर में घंटो बैठे रहते थे और धर्म एवं नैतिकता सम्बन्धी चर्चाएँ सुना करते थे।

कलाम जब प्राथमिक विद्यालय में कक्षा पांच के छात्र थे तो उनके एक सहपाठी रामानंद शाश्त्री थे। कलाम मुसलमान होने के नाते टोपी पहना करते थे एवं रामानंद शास्त्री जनेऊ आदि पहनते थे। दोनों कक्षा में अगली पंक्ति में बैठते थेविद्यालय के एक हिन्दू शिक्षक ने कलाम को मुसलमान होने के कारण पीछे बैठ जाने को कहा। कलाम को बहुत बुरा लगाकिन्तु शिक्षक का आदेश होने के कारण  उन्होंने उनकी आज्ञा का पालन किया और वे पीछे जाकर बैठ गये। इस घटना से उनके सहपाठी रामानंद शास्त्री को बहुत ख़राब लगा और दोनों ने सारी घटना घर में आकर लक्ष्मण शास्त्री को सुनाई। लक्ष्मण शास्त्री ने अगले दिन शिक्षक को बुलाकर बहुत डांटा की वे हिन्दू-मुस्लिम विद्यार्थियों में इस प्रकार का वैमनस्य न फैलाएं। लक्ष्मण शास्त्री ने शिक्षक को कहा की या तो वे घटना के लिए क्षमा मांगे या फिर विद्यालय छोड़ कर चले जाएँ। लक्ष्मण शास्त्री के इस रवैये के कारण शिक्षक में धीरे-धीरे बदलाव आ गया और उन्होंने सभी छात्रों के साथ सौहार्द पूर्ण व्यवहार करना प्रारंभ कर दिया। इस प्रकार कलाम के व्यक्तित्व में भी यही धर्मनिरपेक्षता एवं उदारता समाहित हो गई ।

 बचपन में गरीबी के कारण उन्हें अपनी पढाई तथा परिवार के खर्च के लिए अखबार बेचने का कार्य भी करना पड़ा। प्राइमरी स्कूल के बाद कलाम ने श्वार्ट्ज हाईस्कूलरामनाथपुरम में प्रवेश लिया। वहाँ की शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने 1950 में सेंट जोसेफ कॉलेजत्रिची में प्रवेश लिया। वहाँ से उन्होंने भौतिकी और गणित विषयों के साथ बी.एस-सी. की डिग्री प्राप्त की। अपने अध्यापकों की सलाह पर उन्होंने 1958 में स्नातकोत्तर शिक्षा के लिए मद्रास इंस्टीयट्यूट ऑफ टेक्ना्लॉजी (एम.आई.टी.)चेन्नई का रूख किया। वहाँ पर उन्होंने अपने सपनों को आकार देने के लिए एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग का चयन किया।

इसी दौरान उनकी बहिन ने उनकी पढाई को आगे जारी रखने के लिए अपने हाथ की सोने की चूड़ियाँ तक बेच डाली थी;  जिससे फीस न होने के कारण कलाम को पढाई न छोड़नी पड़े।   जब इंजीनियरिंग के अंतिम दिनों में कलाम अपने किसी प्रोजेक्ट पर कार्य कर रहे थे तो उनके शिक्षक ने उन्हें उनका प्रोजेक्ट पूरा करने के लिए मात्र तीन दिन का समय दिया नसे कहा गया यदि  वे ऐसा न कर सके तो उनकी छात्रवृत्ति रोक दी जाएगी  कलाम ने यह कार्य निर्धारित समय में पूरा कर दिखाया। उनके शिक्षक इस कार्य से बहुत खुश हुए और कहा कि तुम्हे जन बूझकर ऐसा लक्ष्य दिया गया जिससे तुम अभियंता के जीवन में आने वाली कठिनाइयों को समझ सको। कलाम ने 1958 में मद्रास इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी से स्नातक की उपाधि प्राप्त की है। वे पायलेट बनना चाहते थे किन्तु मात्र नौ ही पद थे और उनका स्थान दसवां थाअतः वे पायलेट नहीं बन सके

               उन्होंने 1960 में भारतीय रक्षा एवं अनुसंधान संगठन को अपनी सेवा एक वैज्ञानिक एवं व्यवस्थापक के रूप में देनी प्रारंभ की। वहां पर वे पूरी लगन से अपनी सेवाएँ दे रहे थे किन्तु फिर भी उनका मन कुछ और करने की चाह में था। 1969 में उनका स्थानान्तरण भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) में हो गया। कलाम साहब सबसे पहले ऑफिस आते थे तथा सबसे बाद में ऑफिस से घर जाते थे। उन्होंने अपने काम को इतना सम्मान दिया की आजीवन अविवाहित रहकर देश की सेवा में सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया। इसी समय उनके निर्देशन में स्वदेशी उपग्रह प्रक्षेपण यान SLV3 को तैयार करके प्रक्षेपित किया गयाकिन्तु यह असफल हो गयाकिन्तु कलाम ने हार नहीं मानी। फिर से इस यान को तैयार किया जाने लगा। दूसरी बार इसका प्रक्षेपण सफल रहा तथा कलाम को इसके लिए भारत सरकार की और से पद्म भूषण सम्मान प्रदान किया गया। प्रोफेसर कलाम ऐसे पुरस्कार के बाद भी विनम्र बने रहे। उन में घमंड था ही नहीं और वे इसी यान की री एंट्री नाम से गोपनीय प्रयोग में लग गएइसी का परिणाम था की भारतवर्ष को अग्नि नमक मिसाइल मिल सकी। इस प्रक्षेपण ने भारतवर्ष की सुरक्षा के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण प्रयासों हेतु पथ प्रशस्त किया।  इसी समय कलाम को बंगलौर स्थानांतरित कर दिया गया। बहुत ही छोटी टीम के साथ कलाम ने कार्य करना प्रारंभ किया तथा PSLV के लिए दिन रात मेहनत की गयी। 1981 यह डिज़ाइन बनकर सामने आई। आज जो PSLV सफलता के झंडे गाड़ रही हैवह मूल रूप से कलाम का ही डिज़ाइन था। भारतवर्ष को सुरक्षा के लिए बहुत सी मिसाइलों की एक लम्बी सूची कलाम ने दी। इसीलिए उन्हें लोगों ने मिसाइल मैन की उपाधि दी। 

इसके उपरांत उनको 2002 में भारत का राष्ट्रपति निर्वाचित किया गया। पांच वर्ष के अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने सबसे लोकप्रियईमानदार एवं कर्मनिष्ठ राष्ट्रपति की भूमिका निभाई। यह बात इससे ही सिद्ध होती है की जब कलाम के शपथग्रहण के समय उनका परिवार दिल्ली आया था तो कुछ दिन वहां पर रुकाअपने परिवार के सभी खर्चे उन्होंने अपनेआप ही कियेजबकि ये खर्चे सरकारी खर्च में जुड़ सकते थे। कलाम अविवाहित तो रहे हीसाथ ही उन्हे जमीनमकानकपड़ेगहने तथा रूपये आदि किसी भी भौतिक संपत्ति का लालच नहीं था। अपनी पेंशन भी वे परोपकार में ही खर्च कर देते थे। उनका कोई बैंक बैलेंस और चल-अचल संपत्ति उन्होंने नहीं जोड़ी। कपड़े आदि भी काम चलने लायक ही रखते थे।  उनका सिद्धांत था सादा जीवन उच्च विचार।  

कलाम ने साहित्यिक रूप से भी अपने विचारों को अनेक पुस्तकों में लिखा जिनका कई भारतीय तथा विदेशी भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। साइंटिस्ट तो प्रेसिडेंट और विंग्स ऑफ़ फायर उनकी आत्मकथ्यात्मक पुस्तकें हैंजिनमे उन्होंने अपने जीवन की कठिनाइयों तथा अपनी सफलता-असफलता आदि सभी बातों को लिखा है। इस प्रकार यह भारत के एक विशिष्ट वैज्ञानिक थेजिन्हें 40 से अधिक विश्वविद्यालयों और संस्थानों से डॉक्टरेट की मानद उपाधि प्राप्त हुई। राष्ट्रपति पद के कार्यकाल के बाद कलाम अनेक प्रबंधन संस्थानों में विजिटिंग प्रोफेसर रहे तथा भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान एवं प्रोद्योगिकी संस्थान तिरुवनंतपुरम के कुलाधिपति भी रहे। इस दौरान उन्होंने विभिन्न विश्वविद्यालयों में सूचना एवं प्रोद्योगिकी को प्रतिस्थापित किया।  विभिन्न उल्लेखों से पता चलता है की कलाम आजीवन मुस्लिम धर्मग्रन्थ कुरान एवं हिन्दू धर्मग्रन्थ श्रीमद्भागवतगीता दोनों का ही अध्ययन करते रहे और इनमें जो भी बातें उन्हें अच्छी लगी वे उसी के अनुसार चलते रहे।  सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न सहित अनेक देशी-विदेशीं संस्थानों से अनेक पुरस्कार एवं सम्मान इन्हें प्राप्त हुए। वास्तव वे ऐसे व्यक्ति थे जिनको सम्मानित करने से संस्था या सरकार स्वयं में गर्व का अनुभव करती थी। कलाम युवाओं एवं बच्चों के बीच जाते ही रहते थेउन्होंने कहा था कि मैं बहुत गर्व से यह तो नहीं कह सकता मेरा जीवन किसी के लिए आदर्श बन सकता हैलेकिन जिस तरह मेरी नियति ने आकर ग्रहण किया उससे किसी ऐसे गरीब बच्चे को सांत्वना अवश्य मिलेगीजो किसी सुविधा विहीन छोटे गाँव में रह रहा होशायद मेरा जीवन उन्हें पिछड़ेपन और निराशा की भावना से उबरने में मदद कर सके।

 स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि कलाम ने भगवतगीता में निर्देशित मानव जीवन के सार को चरितार्थ किया। गीता में लिखा गया है कि "योग:कर्मषु कौशलम्" अर्थात इच्छा रहित होकर कुशलतापूर्वक अपने कार्यों को करना ही योग है और ऐसे योग से ही मानव का जीवन दुःख से मुक्त हो सकता है। कलाम के रूप में एक वैज्ञानिक का सामाजिक समर्पण सीखने लायक है।

27 जुलाई 2015 की शाम अब्दुल कलाम भारतीय प्रबंधन संस्थान शिलोंग  में व्याख्यान देने गये थे उसी समय व्याख्यान देते हुए ही उनको दिल का दौरा पड़ गया।उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाया गयालेकिन बाद में उसी शाम इनकी मृत्यु हो गई। अपने निधन से लगभग 9 घण्टे पहले ही उन्होंने ट्वीट करके बताया था कि वह शिलोंग आईआईएम में लेक्चर के लिए जा रहे हैं। कलाम अक्टूबर 2015 में 84 साल के होने वाले थे। सोचने वाली बात यह है कि इतनी ज्यादा उम्र में भी वे कितने सक्रिय थे। उनके जीवन का आदर्श था- कर्म ही पूजा है।


-0-हे न ब गढ़वाल विश्वविद्यालय,श्रीनगर गढ़वाल उत्तराखंड

mrs.kavitabhatt@gmail.com




मेरे हाइकु