डॉ.कविता भट्ट ‘शैलपुत्री’,
जीवन मेरा प्रिय मीत
न जाने क्यों भयभीत
निःशब्द और निरुत्तर
आज मृत्युशय्या पर
तुम नयन पट खोलो
मुख से कुछ तो बोलो
क्यों तुम्हें है मृत्यु-भय
तुम करते थे अभिनय
मरते ही रहे तुम निश्छल
मरने से पहले प्रतिपल
उदरक्षुधा थी बलवान
कुत्सित कहलाए महान
उनके तुम पर आदेश चले
हृदय में केवल आवेश पले
न जाने क्यों भयभीत
निःशब्द और निरुत्तर
आज मृत्युशय्या पर
तुम नयन पट खोलो
मुख से कुछ तो बोलो
क्यों तुम्हें है मृत्यु-भय
तुम करते थे अभिनय
मरते ही रहे तुम निश्छल
मरने से पहले प्रतिपल
उदरक्षुधा थी बलवान
कुत्सित कहलाए महान
उनके तुम पर आदेश चले
हृदय में केवल आवेश पले
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