Wednesday, June 26, 2019

झुठलाया मुझको

डॉ.कविता भट्ट ‘शैलपुत्री’

चाँद आकाश छोड़ चला तारे बहुत गमगीन हैं,

यूँ चाँद की कहानी से उसने बहलाया मुझको।

रात बरी हुई, रात की रानी पर इल्ज़ाम संगीन है,
फिर भी महकेगी कहके उसने सुलाया मुझको।

ज्वार-भाटा है समन्दर में, वह मल्लाह ताज़तरीन है
लहरों का वश कुछ नहीं, मज़ाक बताया मुझको। 

पैमाने खाली हैं, मधुशाला में भीड़ बहुत रंगीन है,
मधुबाला भरेगी रात भर, उसने समझाया मुझको।

आज हो तारीफ ए इंसाफ, कि 'कविता' बेहतरीन है,
इसे जज़्बात कह हर बार उसने झुठलाया मुझको । 
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