डॉ.कविता भट्ट ‘शैलपुत्री'
सतरंगी नव-रश्मियों से
प्राची
के ऐसे अभिषेक हों ।
आशाओं का सूरज उगे तो
निर्मल सबके बुद्धि-विवेक हों॥
द्वेष त्यागें, उत्थान करें मिल
हम भारतवासी सब एक हों ।
पात दम्भ के सभी झर जाएँ
ममता -समता सब अतिरेक हों।
नवगीत
मधुर खग-कंठ गाएँ
प्रेम-सद्भाव -सुमन अनेक हों॥
भारत माँ का
यशोगान करें
हम भारतवासी सब एक हों ॥
क्षुधाएँ शान्त, कंठ हों सिंचित
नव उन्मेष नवल अभिलेख हों।
'कविता' मातृभूमि-सेवा ,धर्म
इसमें निरत
वर्ण प्रत्येक हों ॥
नभ-दिगंत छूने की ललक में
हम
भारतवासी सब एक हों।
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