Sunday, June 30, 2019

मीत मन के

डॉ.कविता भट्ट ‘शैलपुत्री
1
जीवन पथ
विगत दुःख घट
आशा तुमसे।
2
नैन विकल
लिखें पाँती आँसू से
कभी तो बाँच।
3
पीत-पुष्प सा
सुमुख मुरझाया
अब तो आओ ।
4
शीत शरद
तुम बिन बैरी हो
कटु मुस्काए।
5
मीत मन के
कभी तो आते तुम
स्वप्न बनके ।
6
सलवटों -सी
मन-चादर पर
विरह व्यथा ।
7
नित प्रयास
आँसू बाँचूँ तुम्हारे
दे दूँ मैं हास ।
-0-

पीपल मौन

डॉ.कविता भट्ट ‘शैलपुत्री’
1
पीपल मौन
पनघट सिसके
सुध ले कौन?
2
ना ही बतियाँ
रोती है गगरिया,
क्या डगरिया।
3
हँसी छिटकी
चौपाल यों सिसकी
विदा कन्या-सी
4
गाँव से रास्ते
माना जाने के लाखों
लौटे न कभी
5
खाली गौशाला
नाचे-झूमे खामोशी
ओढ़े दुशाला ।
6
गाँव यों रोए-
पगडण्डी रुआँसी
शाम धुआँ -सी
7
विरहन- से
गाँव हैं अब सारे
राह निहारे ।
8
आँखें भी मौन
ग्राम -बालिका वधू
सुध ले कौन ।
9
बूढ़ी चौपाल
तोड़ रही है दम
कोई न प्यार
10
जीर्ण हैं द्वार
पहाड़ी घर के तो,
न मनुहार ।
-0-

रोई नदी माँ

डॉ.कविता भट्ट ‘शैलपुत्री’
1
दैवीय नहीं
भयावह आपदा
मानव कृत
2
धरा कुपित
रुदन चहुँ ओर
अम्बर क्रुद्ध
3
निष्ठुर हुए
शैल पिता, नदी माँ
पाप-संताप
4
निष्प्राण मान
पर्वत का हृदय
छेदे मानव
5
रोई नदी माँ
अश्रुधार से ढहे
गर्व महल
6
अभिलाषाएँ-
विष-वृक्ष तने की
अमरबेल ।
7
प्रफुल्लित है
उन्मुक्त शिखर -सी
आत्मा की लाश
8
विलाप हुआ,
भयावह रूप तो
अभी है बाकी ।
9
किसको कोसे
हर शिला के नीचे
भुजंग बसे ।
-0-

आँखों में पीड़ा

डॉ.कविता भट्ट ‘शैलपुत्री'

आँखों में पीड़ा
उनकी ही मिली ना
ताउम्र खपी।
2
मिटते गए
रोटी खोजते रहे
उनको खोया ।
3
लाली का डेरा
आँखों की सफेदी को
दु:खो ने घेरा॥
4
खोजते रहे
बोल मरहम के
मरते गए ।
5
उसने खींचा
प्रेम-हस्त अपना
जिसको सींचा ।
6
महका किए
किताबों के पन्नों में
रखे गुलाब ।
7
प्रेमी मनाया
उसने सदा इसे
बेबसी कहा॥
8
खोजा उनके
नयनों में स्वयं को
खुद ही डूबे ।
9
उमड़े रेले
उनकी सुधियों के
छलिया हैं जो

पहाड़ी नारी

डॉ.कविता भट्ट ‘शैलपुत्री’
1
पहाड़ी नारी
पहाडी नदी -सी ही
संघर्ष करे ।
2
रुके न थके
गिर-गिर कर भी
दृढ़ प्रयास ।
3
उसका दिन
अठारह घंटे का
रातें-कराहें ।
4
पहाड़नों का
चारा पत्ती में ढला
जीवन पूरा ।
5
झुर्रियाँ उगीं
गवाह संघर्ष की
जर्जर देह।
6
बर्फ -चादर
कली– सी सिमटती
देह की शोभा ।
7
सूनी घाटी में
खनकती चूड़ियाँ
रोएँ पायल ।
8
बर्फीली हवा
पेड़ों पे कृशदेह
लटकी -झूले ।
9
सीढ़ी -से खेत
बिवाईं खून-भरी
आहें न थमें ।
10
मकाँ को घर
बनाना चाहते थे
दीवारें ढही ।
-0-

स्मृति तुम्हारी

डॉ.कविता भट्ट ‘शैलपुत्री’
1
देश-रक्षा में
सर्द- शृंगार मेरा
मन तपता ।
2
अबके आना
प्रिय आलिंगन में
भूल न जाना ।
3
गर्म चाय की
चुस्कियों जैसी मीठी-
स्मृति तुम्हारी ।
4
सर्द विरह,
सैनिक-प्रियतम
सर्दी की धूप ।
5
नभ में पिया
बदली रुई- सी है
उड़ आऊँ मैं ।
6
बर्फीली भोर
प्रिय-उष्णता–रश्मि
कली-सी खिले।
7
अलाव–सा है,
सर्द रात पीड़ा में
स्पर्श तुम्हारा ।
8
बादल-यादें
आलिंगन -सी छाई
मन के नभ ।
9
पथराई आँखें
सैनिक-प्रिया थकी
बाट निहारे ।
10
पहाड़ी नदी
संघर्ष पत्थरों से
फिर भी बहे ।
-0-

विकल मन मेरा

डॉ.कविता भट्ट ‘शैलपुत्री’
1
जब भी रोया
विकल मन मेरा
तुमको पाया।
2
निर्मल बहे
पहाड़ी झरने -सा
प्रेम तुम्हारा।
3
नेह तुम्हारा
सर्दी की धूप जैसा
उँगली फेरे।
3
गूँज रही है
मन-नीरव घाटी
प्रेम-बाँसुरी।
4
प्रेम-अगन
अनोखे आलिंगन
बर्फीली सर्दी।
5
मुझे बुलाए
मूक स्वीकृति-जैसी
तेरी मुस्कान ।
6
लजाई धूप
पलकें ना उठाए
नव वधू -सी
7
अमृत–बूँदें
प्रिय प्रेम तुम्हारा
चाय -चुस्की -सा
8
गर्म लिहाफ़
आँखों में निरन्तर
स्वप्न -शृंखला
9
कोहरा ढके
अठखेलियाँ सारी
प्रिय -संग की ।
10
पूष की रातें
पिया तू सीमा पर
सिहरें तन ।
-0-

मेरे हाइकु