Tuesday, December 31, 2019
Friday, December 27, 2019
Saturday, November 23, 2019
Saturday, November 16, 2019
हाशिए पर प्रेम लिखना
डॉ.कविता भट्ट ‘शैलपुत्री’
एक शाम;
आँखें नम
दिल की ज़मीं भीगी हुई,
महसूस की मेरे ग़मों की गन्ध
और उसने बोया- प्रेमबीज।
प्रतिदिन स्वप्नजल से सींचकर,
चुम्बनों से उर्वरा करता रहा
बिन अपेक्षा ही मरुधरा को।
आज मेरी आँखों में-
वही शख़्स खोजता है-
प्रेम का वटवृक्ष, हाँ।
ऊसरों में बीज बोना गुनाह है क्या ?
हाशिए पर प्रेम लिखना बुरा है क्या?
आँखें नम
दिल की ज़मीं भीगी हुई,
महसूस की मेरे ग़मों की गन्ध
और उसने बोया- प्रेमबीज।
प्रतिदिन स्वप्नजल से सींचकर,
चुम्बनों से उर्वरा करता रहा
बिन अपेक्षा ही मरुधरा को।
आज मेरी आँखों में-
वही शख़्स खोजता है-
प्रेम का वटवृक्ष, हाँ।
ऊसरों में बीज बोना गुनाह है क्या ?
हाशिए पर प्रेम लिखना बुरा है क्या?
Saturday, August 3, 2019
दूर जाते हुए
दूर जाते हुए
डॉ कविता भट्ट 'शैलपुत्री'
दूर जाते हुए मन सीपी सा
यादों के समंदर में खोया था
जिसके सीने को मैंने कई बार
अपने आंसुओं से भिगोया था
खोज रही थी आने वाले
हर चेहरे में उसका निश्छल चेहरा
भोली आँखें- जिनकी नमी
वो ज़माने से छिपाता ही रहा
बस इसलिए कि कहीं
मेरी आँखे फिर से बरसने न लगें
दोनों का दर्द एक सा है,
कहीं दुनिया समझने न लगे
झूठे-बनावटी संबंधो के
महलों की नींव न हिल जाये
तथाकथित सभ्यता-नैतिकता
कहीं धूल में न मिल
जाये
रिश्तों के महल बस बाहर से ही
सुन्दर होते
हैं दिखने में
उम्र गुजरी बेशकीमती संबंधों-
रिवाजों के सामान रखने में
इन सामानों की झाड़-पोंछ में
कितने ही
निश्छल प्रेमी
खो देते हैं अपनी बात
कहने का हुनर, आँखों की नमी
बन जाते हैं मात्र मशीन-
संबंधों के लिए नोट छापने वाली
एक ही छत तले रहते रोबोट;
आकृति- मानव सी दिखने वाली
नम आँखों वाला वो सख्श
क्या फिर से लौटकर आयेगा?
मेरे कंधे पर अपनी हथेली से
हमदर्दी का
हस्ताक्षर करेगा?
मुझे गले लगाकर; क्या सच्ची बात
कहने का हुनर
दोहराएगा?
जो सभ्यता में नहीं; क्या वह
उस सम्बन्ध की धूल
हटाएगा?
जो मिलकर नम होती हैं बरस सकेंगी
वो आँखें क्या
दूर जाते हुए ?
या समेटे रखेंगी ज्वार-भाटा
सभ्यता-नैतिकता का घुटते-घुटाते हुए
?
Monday, July 15, 2019
40-कर्मयोगिनी मौन
कर्मयोगिनी
मौन
कविता भट्ट
ओ आमार उठोनेर रजनीगंधा,
शोनो
शेखाबे की आमाके
अंधकारे
हासार कौशल?
आर हे प्रिये! सादा फूलेर द्वारा
रात्रिर कालो बइये
करो तुमि सशक्त हस्ताक्षर
प्रेम ना कर्म की तोमार वार्ता?
जानाबे आमाय।
कर्मयोगी अथवा रातजागा प्रेमी
के तुमि?
प्रियेर प्रेयसी
अथवा कर्मयोगिनी मौन।
-0-(अनुवादक हिंदी से बंगाली देवनागरी
डॉ.भीखी प्रसाद 'वीरेंद्र' सिलीगुड़ी)
ও আমার উঠলে রজনী গন্ধা ,
শোনো
শেখাবে কি আমাকে অঁন্ধকারে,
হাসার কৌশল?
আর হে প্রিয়ে!
সাদা ফুলের দ্বারা
রাএির কালো বইয়ে
করো তুমি সশস্ত্র হস্তাক্ষর
প্রেম না কর্ম কী তোমার বার্তা ?
জানাবে আমায়
কর্ম যোগী অথবা রাতজাগা প্রেমী
কে তুমি?
প্রিয়ের প্রেয়সী
অথবা কর্ম যোগিনী মৌন।
(देवनागरी से बंगाली लिप्यन्तरण डॉ संजय 'कर्ण' , एच ए आर सी, देहरादून,
उत्तराखण्ड)
'मूल कविता [[कर्मयोगिनी मौन /
कविता भट्ट]]
रजनीगंधा
ओ मेरे आँगन की
सुनो तो तुम !
सिखाओगी क्या मुझे
अंधकार में
मुस्काने का कौशल ?
और हाँ ,प्रिया!
श्वेत पुष्पों से तुम
काले पृष्ठों पर
रात की पुस्तक के
किया करती
सशक्त हस्ताक्षर
प्रेम या कर्म
क्या तुम्हारा संदेश
मुझे बताना
!
कर्मयोगी या फिर
प्रेमी जागते
रातों को अकेले ही
हो तुम कौन
प्रेयसी प्रिय की या
कर्मयोगिनी मौन ।
Friday, July 5, 2019
बन्द दरवाजा
डॉ.कविता भट्ट
सूरज निकलते ही
कभी खुलता था
पहाड़ी की ओर
जो बन्द दरवाज़ा
साथी दरवाजे से
सिसकते हुए बोला-
बन्धु! सुनो तो क्या
है अनुमान तुम्हारा
हमें फिर से क्या
कोई आकर खोलेगा
घर की दीवारों से
क्या अब कोई बोलेगा
इस पर कई वर्षों से
बन्द पड़ी एक खिड़की
अपनी सखी खिड़की की
सूनी आँखों में झाँककर
अँधेरे में सुबकती रोने लगी-
इतने में भोर होने लगी
दरवाजे भी चुपचाप हैं
खिड़कियाँ भी हैं उदास
खुलने की नहीं बची आस
मगर सच कहूँ? न जाने क्यों
इन सबको है हवा पर विश्वास
लगता है; सुनेगी सिसकियाँ
पगडंडियों से उतरती हवा
पलटेगी रुख शायद अब
पहाड़ी की ओर फिर से
खुलेगा- बन्द पड़ा दरवाजा
चरमराहट के संगीत पर
झूमेंगी फिर से खिड़कियाँ
घाटी में गूँजेंगी स्वर -लहरियाँ
-0-
Subscribe to:
Posts (Atom)
-
डॉ.कविता भट्ट ‘शैलपुत्री’ 1 दैवीय नहीं भयावह आपदा मानव कृत 2 धरा कुपित रुदन चहुँ ओर अम्बर क्रुद्ध 3 निष्ठुर हुए शै...
-
डॉ.कविता भट्ट ‘शैलपुत्री’ 1 देश-रक्षा में सर्द- शृंगार मेरा मन तपता । 2 अबके आना प्रिय आलिंगन में भूल न जाना । 3 गर्...